Bhakti Kavya: 'हे री मैं तो प्रेम दिवानी', मीराबाई की रचना आप भी पढ़ें
हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय।
सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय।
गगन मंडल पर सेज पिया की, किस बिध मिलना होय॥
घायल की गति घायल जानै, कि जिन लागी होय।
जौहरी की गति जौहरी जाने, कि जिन लागी होय॥
दरद की मारी बन बन डोलूँ वैद मिल्यो नहीं कोय।
मीरां की प्रभु पीर मिटै जब वैद सांवलया होय॥
हरि बिन कूण गति मेरी।
तुम मेरे प्रतिकूल कहिए मैं रावरी चेरी॥
आदि अंत निज नाँव तेरो हीया में फेरी।
बेरी-बेरी पुकारि कहूँ प्रभु आरति है तेरी॥
यौ संसार विकार सागर-बीच में घेरी।
नाव फाटी प्रभु पालि बाँधो बूड़त है बेरी॥
विरहणि पिव की बाट जोवै राखि ल्यौ नेरी।
दासि मीरा राम रटन है मैं सरण हूँ तेरी॥
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