आज का गीता ज्ञान: पश्यैतां पाण्डुपुत्राणाम् आचार्य महतीं चमूम्
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणाम् आचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥
भावार्थ
हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है।
तात्पर्य
महाभारत की युद्ध भूमि में जब दुर्योंधन ने पांडवों की सेना को देखा तो वह भरोसा नहीं कर पाया कि इतनी कम सेना होने के बावजूद पांडवों की सेना इतनी विशाल कैसे नजर आ रही है। इस पर वह कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य के पास जाता है। वहीं, अर्जुन की पत्नी द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था।
इस झगड़े के फलस्वरूप द्रुपद ने एक महान यज्ञ सम्पन्न किया जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला जो द्रोणाचार्य का वध कर सके । द्रोणाचार्य इसे भलीभाँति जानता था किन्तु जब द्रुपद का पुत्र धृष्ट द्युम्न युद्ध-शिक्षा के लिए उसको सौंपा गया तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई।
अब धृष्टद्युम्न कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में पाण्डवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी ।
दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की इस दुर्बलता की ओर इंगित किया जिससे वह युद्ध में सजग रहे और समझौता न करे। इसके द्वारा वह द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था की कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पाण्डवों के प्रति युद्ध में उदारता न दिखा बैठे। विशेष रूप से अर्जुन उसका अत्यन्त प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है ।
आचार्य = भो द्रोणाचार्य !
तव = भवतः,
धीमता = बुद्धिमता,
शिष्येण = छात्त्रेण,
द्रुपदपुत्रेण = धृष्टद्युम्नेन,
व्यूढाम् = व्यूहरूपेण स्थापिताम्,
पाण्डुपुत्राणाम् = पाण्डवानाम्,
एताम् = एनाम्,
महतीम् = बृहतीम्,
चमूम् = सेनाम्,
पश्य = वीक्षस्व ।
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