Konark Sun Mandir: कोणार्क के सूर्य मंदिर में भरा हुआ है विज्ञान और धर्म का भंडार, पढ़ें रोचक तथ्य
मेरा सनातन डेस्क। ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर पुरी से लगभग 23 मील दूर भागीरथी के तट पर स्थित है। यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। प्राचीन ग्रंथ में सूर्य की महत्ता वर्णन किया गया है। हिंदू धर्म के वेदों में भी सूर्य की पूजा के बारे में बताया गया है। सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष रुप से अपनी आंखों से देख सकते हैं।
सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना गया
कहते हैं कि सूर्यदेव की पूजा करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण होता है। ज्योतिष में भी सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना गया है। सूर्य को हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मांण की आत्मा माना गया है। ऐसे में माना जाता है कि रविवार को सूर्यदेव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इनकी उपासना से स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होना माना गया है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया है।
किसने किया था कोर्णाक सूर्य मंदिर का निर्माण
ओडिशा के कोर्णाक में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी (सन 1260) में करवाया था। अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए यह मंदिर पूरे विश्व में जाना जाता है। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। मान्यता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का जश्न मनाने के लिए राजा नरसिंहदेव ने कोणार्क में सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था।
15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना कर दिया था आक्रमण
लेकिन 15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने यहां लूटपाट मचा दी थी। इस समय सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहां स्थापित मूर्ति को पुरी में ले जाकर रख दिया था। पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। फिर धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होती रही और मंदिर पूरा रेत से ढक गया। फिर 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत मंदिर के निर्माण का काम हुआ और इसी में सूर्य मंदिर खोजा गया। इसे सन् 1949 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दी थी।
मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
ऐसा कहा जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया जाना था लेकिन समुद्र धीरे-धीरे कम होता गया और मंदिर भी समुद्र के किनारे से थोडा दूर हो गया और मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है। यह मंदिर कालचक्र का प्रतीक है जो कि सूर्य देवता के प्रतीक से हमें जोड़ता है।
सूर्य मंदिर में घड़ी से पता लगा सकते हैं समय
सात घोड़े जो कि सूर्य मंदिर को सुबह की और पूर्वी दिशा से खींचते हैं । यह सप्ताह के 7 दिनों के प्रतीक हैं। रथ के 12 पहिए हैं जो कि साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं। दूसरी दिलचस्प बात यह है कि यह साधारण पर यह नहीं है। बल्कि यह सूर्य घड़ी की है। कोई भी पहिए की छाया को देख करके सही समय का अंदाजा लगा सकता है ।
मंदिर में सूर्य भगवान के तीन प्रतिमाएं
1200 कारीगरों की मदद से इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। इस मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइड के पत्थरों से मिलकर हुआ है। मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बना है जिनमें से दो मंडप ढ़ह चुके हैं। इस मंदिर में सूर्य भगवान के तीन प्रतिमाएं हैं। पहली प्रतिमा बाल्य अवस्था की है जो सूर्य के उदय होने की प्रतीक है जिसकी ऊंचाई 8 फीट है, दूसरी प्रतिमा युवावस्था की है जिसकी उंचाई 9.5 फीट है जो सूर्य के दोपहर की अवस्था को दर्शाती है, तीसरी प्रतिमा सूर्यास्त को दर्शाती है जिसकी उंचाई 3.5 फीट है।
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