कुंभनदास की रचना: देखिहौं इन नैननि, सुंदर स्याम मनोहर मूरति....
कुंभनदास की रचना.............
देखिहौं, इन नैननि।
सुंदर स्याम मनोहर मूरति, अंग-अंग सुख-दैननि॥
बृन्दावन-बिहार दिन-दिनप्रति गोप-बृन्द सँग लैननि।
हँसि- हँसि हरष पतौवनि' पावन बाँटि-बाँट पय-फैननि॥
‘कुंभनदास', किते दिन बीते, किये रेनु सुख-सैननि।
अब गिरधर बिनु निसि अरु बासर, मन न रहतु क्यों चैननि॥
कुंभनदास की यह रचना पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार से ली गई गई है। इन रचनाओं का उद्देश्य किसी भी तरह का मुनाफा या लालच के लिए उपयोग करने का नहीं है। बल्कि आसानी से आज के युवाओं तक भक्ति काव्य को पहुंचाना एकमात्र उद्देश्य है। एक बार अकबर ने इन्हें फतेहपुर सीकरी बुलाया था। अकबर के आग्रह पर इन्होंने यह पद गाया...
कुंभनदास गाया कि...
संतन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।
बाको मुख देखे दुख लागे ताको करन परी परनाम।
कुंभनदास लाल गिरिधरन यह सब झूठो धाम।
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