दुनिया में सिर्फ एक ही धर्म है 'सनातन धर्म', बाकी सब पंथ हैं; जानें कैसे
मेरा सनातन डेस्क। अक्सर हमने देखा है कि लोग धर्म और पंथ को एक ही मानते हैं और सनातन धर्म के साथ इस्लाम, किश्चियन आदि को भी धर्म का नाम दे देते हैं लेकिन धर्म और पंथ में क्या अंतर है ये जानने से पहले हमारा ये समझना जरुरी है कि धर्म और पंथ का अर्थ क्या है।
धर्म
धर्म शब्द संस्कृत भाषा के धृ से बना है जिसका अर्थ है किसी वस्तु को धारण करना अथवा उस वस्तु के अस्तित्व को बनाये रखना। धर्मका सामान्य अर्थ कर्तव्य है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन से संबंधित अनेक आचरणों की एक संहिता है जो उसके कर्तव्यों और व्यवहारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है। हिन्दू समाज में धर्म की मान्यता इस प्रकार है धारणात धर्ममाहु अर्थात् धारण करने के कारण ही किसी वस्तु को धर्म कहा जाता है। जो जीवन को धारण करे, जो जीवन में धारण करने योग्य है, वह धर्म है।
धर्म हमारे सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक आंतरिक मूल्यों का विशाल महासागर है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवम् दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं केप्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है।
पंथ
पंथ से तात्पर्य ऐसे संगठन है जिसका चुनाव व्यक्ति अपनी मर्जी से करता है इसमें विभिन्न समुदायों के लोग शामिल होते हैं पंथ एक छोटा और अपेक्षाकृत नया धार्मिक समूह है जो बड़े और अधिक स्वीकृत धर्म का हिस्सा नहीं है, सामाजिक रूप से धर्मनिष्ठ या अद्वितीय मान्यताओं और प्रथाओं के साथ। पंथ नाम से एक नव स्थापित धर्म भी कहा जा सकता है। पंथ का उपयोग किसी विशेष आकृति या वस्तु के लिए निर्देशित धार्मिक श्रद्धा और भक्ति की एक प्रणाली को संदर्भित करने के लिए भी किया जाता है।
धर्म और पंथ में अंतर
यद्यपि धर्म को अक्सर एक ईश्वर या देवताओं के समूह या देवत्व के विश्वास और पूजा में विश्वास के रूप में परिभाषित किया जाता है। लेकिन पंथ में सभी देवताओं पर विश्वास नहीं करते उदाहरण के लिए बौद्ध धर्म, आर्य समाज के लोग ये ईश्वर में विश्वास ना करके बल्कि अपने गुरुओं के बताए हुए रास्ते पर चलना पसंद करते हैं। पंथ आम तौर पर धर्म की तुलना कम अनुयायी होता हैं।
धर्म संगठित है, स्थापित है
धर्म में एक पंथ से अधिक अनुयायी होते हैं। पंथ नया है, कम संगठित है और स्थापित नहीं है। धर्म संगठित है, स्थापित है और इसका लंबा इतिहास है। पंथ एक धार्मिक बंधुत्व है जिसका आधार गुरु द्वारा दिखाया गया रास्ता है जिसके नाम पर यह एक समूह के रुप में जाना जाता है जैसे कबीर पंथ, दादू पंथ आदि। पंथिक संगठन में गुरु की महत्ता के कारण गुरुद्वारा प्रभावी सामाजिक-जातीय महत्व है।
सनातन धर्म धर्म ही श्रेष्ठ
हिन्दू धर्म समूह का मानना है कि सारे संसार में धर्म केवल एक ही है , शाश्वत सनातन धर्म। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो धर्म चला आ रहा है , उसी का नाम सनातन धर्म है। इसके अतिरिक्त सब पंथ , मजहब मात्र है।
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