तप, योग और साधना में ऊं मंत्र का कितना महत्व है, जानें लोगों को कैसे देता है सकारात्मक ऊर्जा

मेरा सनातन डेस्क। हिन्दू धर्म में किसी भी पूजा में मंत्र की शुरुआत ऊं के साथ होती है। ऊं एक शब्द ही नहीं बल्कि अपने आप में एक पूरा संसार है। सदियों से हमारे ऋषि मुनि ऊं का उच्चारण करके तप योग और साधना करते आए हैं। कहते हैं कि इस चमत्कारी शब्द में इतनी शक्ति है कि केवल ऊं के जाप से ईश्वर को पाया जा सकता है।
ऊं शब्द, अ, उ, और म अक्षर से मिलकर बना है जिनमें अ का अर्थ है उत्पन्न होना, उ का अर्थ है उठना और म का अर्थ है मौन होना अर्थात् ब्रहमलीन हो जाना। ऊं के उच्चारण से मानसिक शांति प्राप्त होती है। ऊं के उच्चारण मात्र से आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है।
परमात्मा से सीधा जुड़ने का साधारण तरीका है ऊं का उच्चारण करना। ऊं शब्द में अ उ म का एक अर्थ ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतीक भी है साथ ही यह भू लोक और स्वर्ग लोक का प्रतीक है। कहा जाता है कि ऊं के जाप से ईश्वर प्रसन्न होते हैं क्योकि ऊं शब्द में ईश्वर के सभी रूपों का संयुक्त रूप है। कहते हैं कि संसार के शुरु होने से पहले जो ध्वनि गूंज रही थी वह ऊं ही थी। इसे ब्रह्मांड की आवाज भी कहते हैं। कहते हैं कि ऊं से जुड़ते ही मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने हर मंत्र से पहले ऊं को जोड़ दिया।
ऊँ के उच्चारण करने का सही समय और तरीका
प्रात: उठकर अपनी नित्य क्रिया से पूर्ण होकर ऊं शब्द का उच्चारण करें। ऊं का उच्चारण 5, 7, 11, 21 बार अपनी सुविधा से कर सकते हैं। इसे जोर-जोर से या धीरे बी कर सकते हैं। ऊं का उच्चारण हमेशा स्वच्छ और खुले वातावरण में करना चाहिए इससे शरीर को स्वच्छ हवा जाती है जो बहुत ही लाभदायक होता है। ऊं का उच्चारण करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना चाहिए। अगर आप योग करते हैं तो शुरुआत के पांच से 10 मिनट तक ऊं का जाप करना चाहिए।
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